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साकिया तू कमाल करता है / ज्ञानेन्द्र मोहन 'ज्ञान'
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साकिया तू कमाल करता है।
ज़ाम देकर निढाल करता है।
चाहता काम टालना जब वो,
बेतुके से सवाल करता है।
इस तरह हल नहीं मिला करते,
बेवज़ह क्यों बवाल करता है।
वाह हाक़िम किया मुअत्त्तिल फिर,
नोट लेकर बहाल करता है।
काम आता नहीं परे हट जा,
किसलिए झोलझाल करता है।
है सुना बाद मयकशी वो तो,
शायरी बेमिसाल करता है।
'ज्ञान' ममनून हो गया उसका,
इस क़दर देखभाल करता है।