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साक्षी / राजेश कमल

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असुर्यम्पश्यवों के देश में
कहाँ से आ गयी तुम
माना यह इक्कीस्मी सदी है
लेकिन
भूर्ण हत्याएँ
तो कोई मध्यकाल की बात नहीं
फिर
कहाँ से आ गयी तुम

पंडितों, मुल्लों, खापों के देश में
उस देश में
जहाँ हत्यारों के पक्ष में हैं झंडे
हाँ उसी देश में
जहाँ आतताइयों के पक्ष में हैं झंडे।

कैसे बचाया तुमने ख़ुद को
कैसे बनाया तुमने ख़ुद को

सिखा दो न
इस देश की तमाम साक्षियों को
कि कैसे पटकते है
जिंदगी की कुस्ती में
रंगे सियारों को

तुम्हे इस कुस्ती के लिए
ताम्बा नहीं
देता हूँ पूरा सोना

सलाम है उसे जिसने दी तुम्हे यह काया
सलाम है तुम्हे जिसने तोड़ी सब माया