भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सात जनम का रिश्ता / उमा शंकर सिंह परमार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुहाग के रंगीन
जोड़े में सजी बैठी
एम०बी०ए० पास लड़की
वैदिक मंत्रोच्चार के साथ
सात फेरों को तैयार

भटकते-भटकते
चप्पल घिस गई
बाल उड़ गए
अन्तहीन बहस में
मुश्किल से जोड़ा है
सात जन्मो का रिश्ता

बाज़ार सजा है
कानूनों की इस बस्ती में
पेट दबाया
कौड़ी-कौड़ी कमाया
पगड़ी बेची
सब कुछ गँवाया
बड़ी मुश्किल से ख़रीदा है
बेटी
सात जन्म का रिश्ता

बाज़ार आबाद रहेगा
सुहागिनी सजती रहेंगी
फेरे पड़ते रहेंगे
पगड़ी बिकती रहेगी