भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
साथ-साथ / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
आओ...
फिर एक बार
मिलकर देखें अक्स
दर्पण में साथ - साथ
कितने बदले तुम
कितने बदले हम
कितने बदले गए हालात...।