भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
साथ अपने ले गया बचपन / सोनरूपा विशाल
Kavita Kosh से
एक सीधा सा सरल सा मन
साथ अपने ले गया बचपन
फ़िक्र से अंजान रहते थे
पंछियों जैसे चहकते थे
इंद्रधनु जैसी लिये मुस्कान
चुलबुली नदिया सी बहते थे
मस्तियों से गूंजता आंगन
साथ अपने ले गया बचपन
हम थे मौलिक गीत के गायक
रह गये अब सिर्फ़ अनुवादक
कहने को आज़ाद हैं लेकिन
ख़्वाहिशों के बन गए बंधक
तृप्ति का, संतुष्टि का हर क्षण
साथ अपने ले गया बचपन
प्रेम को व्यापार कर बैठे
ज़िन्दगी रफ़्तार कर बैठे
जो नहीं था ज़िन्दगी का सच
झूठ वो स्वीकार कर बैठे
सच को सच कह्ता हुआ दर्पण
साथ अपने ले गया बचपन
रहके अपने आप तक सीमित
साधते रहते हैं अपना हित
स्वार्थ की पगडंडियों पे चल
कर रहे हैं ख़ुद को संचालित
भोर की किरणों सा भोलापन
साथ अपने ले गया बचपन