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सादगी उसकी इस कदर भाई / देवी नांगरानी
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सादगी उसकी इस क़दर भाई
क्या ज़रूरत ग़ज़ल को सजने की
काम कुछ भी नहीं है परदे का
लाज आँखों में चाहिये उसकी
उसकी तर्ज़े-बयां का क्या कहना
है फ़िदा उसके फन पे हर कोई
ज़िन्दगी में वो कामरां होगा
चाहिये दिल को हिम्मत-अफ़जाई
कितना दिलगीर दिल है मेरा आज
काटने दौड़ती है तन्हाई
दर्द ‘देवी’ कराहता जब-जब
उसको सहलातीं उंगलियाँ मेरी