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सादा रोटी करहर होत जाइ / चित्रा गयादीन
Kavita Kosh से
पीसल आम के चटनी
बोतल भरल पानी
गरमाइके झुराइ
कोई दोहरावत जाइ
कई दाईं तोर नाम
बन्हल रहा तोर हाथ
बन्द रहा तोर मुँह
पड़ल रहल पेड़ के नीचे
पुराना सपना ओढ़ के तोर देह
रोवत है अब तोर खेत
झल्लासी और काँटों के नीचे
जिन्दा याद गाड़ के तू
पीछे छोड़ देले सब
ठंडा राख के कोयला लिखत है
तोर नवा दूसर नाम
ए मय्या
आज चूल्हा ना बार, ना बार।