भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
साफ-सफाई के लिए पाँच / खेया सरकार
Kavita Kosh से
|
साफ़-सफ़ाई के लिए
- कभी नहीं मिले मुझे पाँच
हर साल प्रथम आती स्कूल में,
लेकिन उसी पाँच के कारण
पूरे नम्बर कभी नहीं मिले किसी भी विषय में।
माँ क़िताबों की रैक सहेज देती, यदि
कुछ ढूँढ़ने पर जब नहीं मिलता मुझे,
मन ही मन भुनभुनाती!
कॉलेज में सहेलियाँ सज-धज कर आतीं
सोचा करती मैं,
सम्भव नहीं है क्या मुखौटे के बग़ैर जीना!
हॉस्टल में अच्छा ही लगता
ऑफ़िस भी तो मिल गया था मन-मुताबिक़
शादी के भूत ने
निगल लिया ऑफ़िस को,
उसके बाद?
'ठीक से झाड़ू नहीं लगी। बर्तन धोओ फिर से।'
'घर सजाना नहीं सीखा है क्या? कपड़ों की अह ठीक से नहीं की...।'
साफ़-सफ़ाई का यह पाँच
आज भी पीछा कर रहा है।
मूल बंगला से अनुवाद : गीता दुबे