भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सामरि हे झामरि तोर दहे / विद्यापति
Kavita Kosh से
सामरि हे झामरि तोर दहे।
कह कह कासँए लायलि नहे।।
निन्दे भरल अछि लोचन तोर।
कोमल बदन कमल रुचि चारे।।
निरस धुसर करु अधर पँवार।
कोन कुबुधि लुतु मदन-भंडार।।
कोन कुमति कुच नख-खतदेल।
हा-हा सम्भु भागन भेय गेल।।
दमन-लता सम तनु सुकुमार।
फूटल बलय टुटल गुमहार।।
केस कुसुम तोर सिरक सिन्दूर।
अलक तिलक हे सेहो गेल दूर।।
भनइ विद्यापति रति अवसान।
राजा सिंवसिंह ईरस जान।।