भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सारा घर आग-आग हो गया / दिनेश सिंह
Kavita Kosh से
खिली धूप तुझको कह देने से
चेहरा-चेहरा चिराग़ हो गया ।
तुझको चन्द्रमुखी कह दिया
सारा घर आग-आग हो गया ।
सावन की धूप या कुआँर की
धूप नहीं होती है प्यार की ।
फागुन की धूप बड़ी प्यारी है
मारी है मगर वह बयार की ।
बहकती बयार तुझे कहने से
हर मौसम बाग़-बाग़ हो गया ।
तुझको जो लाल परी कह दिया
सारा दिन आग-आग हो गया ।
तुझ-जैसी बहकती बयार मिले,
या कोई जलता अंगार मिले ।
पुरवइया सपनों तक ले जाए
दर्द पोर-पोर, तार-तार मिले ।
स्वप्न-सुंदरी तुझको कहने से
हर सपना हि सुहाग हो गया
मौलसिरि तुझको जो कह दिया
फूल-फूल, आग-आग हो गया ।