भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सारे नाते निभा गयीं आँखें / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
सारे नाते निभा गयीं आँखें
जब से दिल मे समा गयीं आँखें
ख़्वाब कितने ही जगा देती हैं
मन को कुछ ऐसे भा गयीं आँखें
है कसक जैसी नज़र में उनकी
दर्द दिल का सुना गयीं आँखें
कुछ न कह के भी बहुत कुछ कहतीं
जाने क्या क्या बता गयीं आँखेँ
है मुहब्बत की अजब लज़्ज़त ये
रोग दिल को लगा गयीं आँखें
लब पे मुस्कान सजाये रक्खी
भेद फिर भी बता गयीं आँखें
दिल के अंदर हैं दुबक के बैठीं
कितना बेबस बना गयीं आँखें