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सारौ / चंद्रप्रकाश देवल

उडीक री आंख्यां करवायगी
वाट न्हाळतां
वा चित्त रै कोळै ऊभी है
भांन भूल्योड़ी
आकळ है न वाकळ
बस, उडीकै है लगातार

औ जोय
कोई चित्त रै मज्झ सूं
समझायस रै सुर में कैवै
‘सुण, म्हनै ठाह है
वौ नीं आवैला मिजाजीी-बादीलौ
आ तादस्ट बात है
खराखरी पतवाण्योड़ी’

सुणै, उडीक
सुण आपरी ठौड़ सूं चुळै
अर चित्त रै पिछोकड़ै जाय ऊभ जा
म्हनै ठाह है
वा वठै ई उडीकैला इज
इण टाळ उडीक रै कीं सारै नीं।