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साल-दर- साल / ऋषभ देव शर्मा
Kavita Kosh से
यह लो,एक बरस बीत गया
हम प्रेम की प्रतीक्षा में
बस लड़ते ही रह गए
साल भर
इसी तरह गँवा दिए
साल दर साल
लड़ते लड़ते
प्रेम की प्रतीक्षा में
बहुत खरोंचें दीं हम दोनों ने
एक दूसरे को
बहुत अपराध किए
बहुत सताया एक दूजे को
एक दूजे का प्यार जानते हुए भी
समय तेजी से दौड़ने लगा हैं
पिछले हर बरस से तेज
इस तीव्र काल प्रवाह में
कल हो न हो
फिर समय मिले न मिले
क्षमा माँग लूँ तुमसे
तुम जो धरती हो
तुम जो आकाश हो
तुम जो जल हो, वायु हो
तुम जो अग्नि हो, प्राण हो, प्रेम हो
मैंने तुम्हें बहुत सताया,बहुत बहुत सताया
मेरे अपराधों को क्षमा करना
नए वर्ष में
फिर मिलेंगे हम
नए हर्ष से