भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सावण री डोकरी / आशा पांडे ओझा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

डौयां-डौयां
काजळ घालियोड़ी
आ सुरंगां सावण री डौकरी
फर-फर करती इयां फिरै
जाणै कोई
सोळा बरसां री हवैकरी
कोरी चार मइना काम माथै आवै
आठ मइना बैठी खावै
उण में भी इतरावै
वा भाई वा !
कैड़ी गजब री
इणरी नौकरी।