भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सावन की पुरवइया गायब .. / देवमणि पांडेय
Kavita Kosh से
सावन की पुरवइया गायब ..।
पोखर,ताल, तलइया गायब...!
कट गए सारे पेड़ गाँव के..
कोयल और गौरइया गायब...!
कच्चे घर तो पक्के बन गए..
हर घर से अँगनइया गायब...!
सोहर, कजरी, फगुवा भूले..
बिरहा नाच नचइया गायब...!
गुमसुम बैठी है चौपाई
दोहा और सवइया गायब...!
नोट निकलते ए टी एम से....
पैसा, आना, पइया गायब...!
दरवाज़े पर कार खड़ी है...
बैल, भैंस, और गइया गायब...!
सुबह हुई तो चाय की चुस्की..
चना-चबैना, लइया गायब...!
भाभी देख रही हैं रस्ता....
शहर गए थे, भइया गायब...।