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साहस / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
मालिक की ऑंखें हो गयी हैं छोटी
देखती हैं वे केवल अपने बच्चों को
बॉंटती हैं वे ढेर सारी पटाखे रंग-बिरंगे
होती हैं खुश उन्हें फोड़ते देखकर
पास खड़ा घर का काम करने वाला बच्चा
जो देखता है अपने मालिक को
पिता की नजर से
कर नहीं पाता साहस थोड़ा सा भी
दो फुलझाडिय़ॉं तक उनसे मॉंगने का ।