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साहस है तुम्हारे भीतर / महेश चंद्र पुनेठा
Kavita Kosh से
तुम मुझे
अच्छी लगती हो
इसलिए नहीं -
कि तुम्हारी मुस्कान में
है दिशाओं के खुलने की-सी उजास।
कि तुम्हारी नज़रों में
है गुनगुनी धूप की-सी चमक
कि तुम्हारी चाल में
है लहराती हुई खड़ी फ़सल-सी लोच
कि तुम्हारी सुंदरता में
है षड्-ऋतुओं के विविध रंग
बल्कि इसलिए
कि साहस है तुम्हारे भीतर
ग़लत को ग़लत कहने का ।
सड़ी-गली और पक्षपाती
रूढ़ियों एवं परम्पराओं को
तोड़ने का ।
अत्याचार -अन्याय के खिलाफ
खड़े होने का ।
विसंगति एवं विद्रूपताओं पर
प्रश्न खड़े करने का ।