सिंड्रेला / प्रतिभा सिंह
सिंड्रेला!
बधाई हो तुम्हें
तुम्हारी चप्पल मिल गई।
किन्तु जानती हो तुम?
ऐसी बहुत-सी लड़कियाँ हैं
जिनकी खोई हुई चप्पलें नहीं मिलती
कभी नहीं
बह जाती हैं
किसी नदी, तालाब या कि गटर में
अथवा गिर जाती हैं
किसी खाई में
इतने गहरे कि कभीं नहीं मिलतीं।
तुम यह भी जानती हो?
उन भाग्यहीन लड़कियों की
माँ या बहनें सौतेली नहीं होती हैं
फिर भी चप्पलें खो जाती हैं।
तो जानती हो क्यों?
क्योंकि उनके पास कोई जादुई परी नहीं होती है
जो समझा सके उन मांओं को
कि बेटी को पुरुष शरीर नहीं
एक प्रेमी चाहिए
सिर्फ प्रेमी
जो नाप सके उसके हृदय की गहराई
और उतर सके गहरे उसके वर्तमान में
ताकि बना सके सीढियाँ उसके भविष्य की
अपने मजबूत हाथों से।
उन बहनों को बता सके
कि तुम्हारी बहन की खोई चप्पल मिलना
कितना जरूरी है
अन्यथा बाँध दी जाओगी
तुम भी
किसी सीलनभरे चौखट के खूंटे से
कि यही तुम्हारी किस्मत थी।
हिम्मत दे सके उसके राजकुमार को
क्योंकि प्रेम करना पाप नहीं है
इसलिए चप्पलें सन्दूक में रखकर रोने से बेहतर है
हाथ में लेकर निकल जाओ ढूँढने
अपने हिस्से का प्रेम
समय रहते।
क्या पता
तुम्हारी सिंड्रेला प्रतीक्षा कर रही होगी
धरती के किसी कोने पर
यूँ भी
यह गोल है॥