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सिक्का चला पूँजी का /राम शरण शर्मा 'मुंशी'
Kavita Kosh से
कितना डूबेगा आसमान ?
धरती के छोर के किनारे कट गए
पुरातन के पुराण के, सिद्धान्त लट गए
सिक्का चला पूँजी का, और बट गए
तहख़ाने भरने के कब पूरेंगे अरमान?
कितना डूबेगा आसमान?
विद्या है, कला है, ज्ञान है,
सृजन का दाप है, विज्ञान है
जीना लेकिन जैसे पाप है
ज़िन्दगी करोड़ों की जैसे मरघट, मसान !
कितना डूबेगा आसमान ?