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सिक्के / लीलाधर जगूड़ी
Kavita Kosh से
जिस समय भी
कोई आत्मा बिक रही होगी
ये सिक्के
अखण्ड और अभेद्य रहेंगे
आत्मा किस अठन्नी का नाम है?
वह जो एक सन्तरा देती है
या दो केले
एक गिलास गन्ने का रस
या एक गठ्ठी पालक
या जो सौ ग्राम टमाटर देती है
आत्मा किस अठन्नी का नाम है?
इन सिक्कों में से
किसमें
मेरी आत्मा की
सबसे बड़ी ख़ुशी भरी है?
दुनिया कभी भी
एक साथ नहीं बिकती
वह हर आदमी के साथ
अलग-अलग बिकती है
ये बार-बार लौटेंगे
और अपनी घटी हुई
क़ीमत से भी
दुनिया को ख़रीद लेंगे।