सिर पर रख कर / द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
सिर पर रख कर बोझ हाट में लाया हूँ,
हानि-लभ से मेरा कोई काम नहीं है।
मिलते जो आदेश मुझे हैं सेनानी के
मेरा धरम सिर्फ उनका पालन करना है;
होगा क्या परिणाम, कभी क्षण भर भी मुझको
तर्क-वितर्क न उनके बारे में करना है।
सैनिक बन कर सिर्फ युद्ध में आया हूँ मैं
हार-जीत से मेरा कोई काम नहीं है॥1॥
बड़ा कठिन है खुश करना सबको दुनिया में
करता हूँ इसलिए वही जो मन कहता है;
बुरा लगे या भला किसी को, है मजबूरी
उलटे पथ पर पैर नहीं मेरा उठता है।
करता हूँ जो कुछ, करता कर्तव्य समझकर
यश-अपयश से मेरा कोई काम नहीं है॥2॥
जैसे नाविक छोड़ जीर्ण नौका को अपनी
नई नाव लेकर धारा में चल देता है;
वैसे ही मेरा नाविक भी जीर्ण देह को
छोड़, नये तन की नौका को ले लेता है।
माटी में मिलता है सोने-सा तन, लेकिन
शोक-हर्ष से मेरा कोई काम नहीं है॥3॥
आज देख कर मुझे समझ लेना कभी यह
इसके पहले था दुनियाँ में कभी नहीं मैं;
जब देखो तुम कल न मुझे, तो यह न समझना
हूँगा अब फिर इस दुनियाँ में कभी नहीं मैं।
मैं वह आत्म-तत्व जो अजर-अमर अविनश्वर
जन्म-मरण से मेरा कोई काम नहीं है॥4॥