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सिर्फ तेरा नाम लेकर रह गया / वसीम बरेलवी
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सिर्फ तेरा नाम लेकर रह गया
आज दीवाना बहुत कुछ कह गया
क्या मेरी तक़्दीर मे मंज़िल नही
फ़ािसला क्यों मुसकुराकर रह गया
िज़न्दगी दुनिया है ऐसा अश्क था
जो ज़रा पलकों पे ठहरा, बह गया
और क्या था, उसकी पुरिसश का जवाब
अपने ही आंसू छु पाकर रह गया
उससे पूछ ऐ कामयाब-ए-िज़न्दगी
जिस का अफ़्साना अधूरा रह गया
हाय! क्या दीवानगी थी ऐ 'वसीम'
जो न कहना चािहए था, कह गया