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सिलचर से अगरतला का सफर / मधुछन्दा चक्रवर्ती
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कितनी बार
इन रास्तों में पर सफ़र किया है मैंने
कितनी-कितनी बार
कितनी बार ये गलियाँ, सड़कें
ये घर मुझसे मिलकर गुज़रे हैं,
कितनी-कितनी बार।
खिलते फूल, लहलहाते खेत
खिलते चेहरे, खिलती आवाजें,
मुझसे कह गए हैं बहुत कुछ,
कितनी-कितनी बार
फिर से वापस लौटना चाहती हूँ
कि आस नहीं मिटी मेरी
लोग पूछते हैं मुझे
वहाँ जाओगी तुम
कितनी-कितनी बार?