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सिसिर / पतझड़ / श्रीउमेश
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ऐलोॅ छै हड़कम्प जाड़ तेकरा पर छै पछिरूा के जोर।
सूझैं नै छै गाछ-गछेली देख कुहासोॅ छै घनघोर॥
भोरे-भोरे घूर लगै छै गिरहस्थोॅ के द्वारी पर।
मुट्ठी बान्धी केॅ, कांखी तर, गेलोॅ कलुआ धूरी तर॥
बाभन पेट राड़ बकोटें, तापी रहलोॅ छै ई धूर।
बाबू भैयां साल-दुसाला सें ई जाड़ करै छै दूर॥
सीत लहरियाँ उमकी-धुमकी पाला खूब गिराबै छै।
ठिठुरी क मरलोॅ कत्तेॅ, कत्तेॅ के पीर रिाबै छै॥