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सीख लिया / विजय वाते
Kavita Kosh से
शब्दों का बाज़ार सजाना सीख लिया
हमने जयजयकार लगाना सीख लिया
घर आँगन के जलने की परवाह किसे
हमने तो हुंकार लगाना सीख लिया
बस इक कोण से चीजें जानी परखी पर
अपने को अवतार कहाना सीख लिया
खूब भुनाई भूख गरीबी लाचारी
पीड़ा को हथियार बनाना सीख लिया
कौन किसी का दुःख बाटे जब लोगों ने
रिश्तों को औज़ार बनाना सीख लिया
मिल जुल कर रहने की केवल बातें की
आँगन में दीवार उठाना सीख लिया