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सीढ़ी / रेखा चमोली
Kavita Kosh से
बहुत से लोग जो
मेरे कंधों पर पाँव रख
आगे बढ़ गए
मिल जाते हैं कभी-कभार
कुछ दूर से ही
काट लेते हैं रस्ता
कुछ नज़दीक से
गुज़रते हैं
मुस्कुराते हुए
मैं फिर बनती जाती हूँ
सीढ़ी।