सीता रो सम्मान के रक्षा / जटाधर दुबे
सुनो सिया सुकुमारि जिद्द तों अपनोॅ त्यागोॅ,
माया रो ई चक्रव्यूह एकरा से जागोॅ।
माटी रो ई देह बनै छै, सोना से नांय,
मोह नींद में मन छौं पड़लो जागो, जागोॅ।
तोरो सुरक्षा हमरो छै दायित्व हमेशा,
हमरो वचन अवध, मिथ्ािला में सब रो आशा।
कहीं वचन पालन में हमरो चूक जे भेतै,
दशरथ-नन्दन देतै सबके घोर निराशा।
अपना के पहिचानोॅ सीता तों लक्ष्मी छोॅ,
सुख सम्पति तोरे किरपा से जगमाता छोॅ।
तोरो हठ से राम बहुत निर्बल होय जातै,
राम-शक्ति छो तोंही, राम-मर्यादा तों छोॅ।
प्रभु के चिन्ता देखी जगत जननी अकुलावै,
हमरो तन श्री राम राह रोध अटकावै।
अग्निदेव हे पिता आय तों राह दिखावोॅ,
नाय कोय उलझन मंज़िल से प्रभु भटकावै।
अग्निदेव सब बात समझलैं शीश नवावे,
माँ लक्ष्मी सशरीर अनल के' ठौर बनावे।
माया, सीता रूप धरि, प्रत्यक्ष भै गेली,
सब लीला श्री राम कृपा जानकी बुझावै।
बितलै लंका युद्ध विभीषण राजा बनलै,
सीता लावै ली हनुमत के आज्ञा भेंटलै।
माया सीता के स्पर्श प्रभु नांय करतै,
लखन लाल अनजान रामलीला नांय जानलै।
मां सीता के अग्नि परीक्षा विस्मयकारी,
मन नाय माने मतुर राम रो आज्ञाकारी।
लखन करैं प्रज्वलित अग्नि सिय प्रवेश करलैं,
सब कलंक ले साथ जरे ऊ माया-नारी।
सिया संग सशरीर प्रकटलैं अनल देवता,
राम पाशर््व में फेरु बिराजै जग रो माता।
सीता रो सम्मान सुरक्षा हरि ने कैलकै
मतुर हाय, शंका में घिरलोॅ अवध रो जनता।