सीता सहित राम चलला अजोधा / अंगिका लोकगीत
प्रस्तुत गीत में बेटी-विदाई के समय माँ की हृदय-विदारक वेदना का वर्णन हुआ है। माँ ने अपनी बेटी देकर बेटा अर्जित किया, लेकिन उस बेटी को, जिसे उसने सुख-दुःख में पाल-पोसकर बड़ा किया था, दामाद अपने घर लिये जा रहा है। माँ सोचती है कि अब मैं सोते-उठते किसे पुकारूँगी? बेटी को भी दुःख है कि उसे अब प्रति प्रातः माँ के पाँव के दर्शन नहीं होंगे। भाभी अपनी ननद को सांत्वना देती है कि अब मैं आपके बिना उदास रहूँगी तथा पास-पड़ोस की स्त्रियाँ उसे एक से इक्कीस होने का आशीर्वाद देती हैं। बेटी-विदाई के समय यों तो सभी दुःखी होते हैं, लेकिन माँ का दुःख वर्णनातीत होता है।
सीता सहित राम चलला अजोधा, हिरदै के कैने<ref>किए हुए</ref> कठोर।
बेटी दै<ref>देकर</ref> हम बेटा अरजलहुँ<ref>अर्जित किया</ref>, दुनू जाय छै देस के ओर॥1॥
सुख दुख कै हम पोसल सुगबा, सेहो आय<ref>आज</ref> होय छै बिछोह।
की गति मोरा लिखल बिधाता, ककरा करब नित सोर<ref>शोर करना; पुकारना; बुलाना</ref>॥2॥
सुन्नर सुभूमि छोड़ि चलला अजोधा, आय कैने नगर उदास।
सूति उठि माय पद छुटले हे दाइ<ref>छोटी बच्ची के लिए प्यार का संबोधन</ref>, कानथि<ref>रोती है</ref> करथि बिलाप॥3॥
भौजी कहथि दाइ जाउ आज तजि गिरही, तोरो बिनु रहब उदास।
अरोसिन परोसिन आसीस मनाबथिन, होयत में एक से एकैस<ref>इक्कीस</ref>॥4॥