सीतोॅ में उजास हे / अनिल कुमार झा
बैंगनी सीमोॅ के फूल खिलै छै नीला रं अकास हे,
लाल किरणियाँ आबी भरलकै सीतोॅ में उजास हे।
दिन ते डेग-डेग धरै में सिहरै
खाली तरवा सीतोॅ से भिंजलै,
कोकड़ी के सिसकारी लै लै
केन्होॅ बुतरू सुरूज से मिललै।
चली चली के थकलोॅ गेलै मिललै न कन्हौं विभास हे,
लाल किरणियाँ आवी भरलकै सीतों में उजास हे।
दुआरी पर घूरी के घेरी के बैठलोॅ
आपस में गप्पोॅ पर गप्प निकललोॅ,
बच्चा तेॅ लुत्ती जराय के फूकै
दिन दुनियाँ छै हालत छितरलोॅ।
चुनी निछी बातोॅ के बात की कहियोॅ जीवन बितै बिन आस हे
लाल किरणियाँ आबी भरलकै सीतोॅ में उजास हे।
कालोॅ के चिंता पर कल के चाहत
खेती किसानी पर घिरलोॅ आफत,
मौसम न मौसम के रखवाला सब
सोचै न कुछू छै साँसोॅ के साँसत।
गुजर-बसर जे होय जा कैन्होॅ रहै न कोय कहूँ पास हे,
लाल किरणियाँ आबी भरलकै सीतोॅ में उजास हे।