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सीधा सच्चा / अनिल मिश्र

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उसकी खुरदरी बातों में
मिट्टी के पके बर्तन की खनक होती है
कबीर की तरह देता है सवालों के उत्तर
न वादी पसन्द करते हैं उसे न प्रतिवादी
जलसों और जुलूसों के लिए कभी उपयुक्त नहीं समझा गया उसे

चमक और रोशनी से दूर वह कुछ कहना चाहता है
जिसे अनसुना कर देते हैं किसी मुद्दे पर बहस करते लोग
बेपता चिट्ठियों की तरह उसकी बातें
इधर उधर गिरती हैं डाकखाने के एक कोने में
आज के दौर में लगता नहीं किसी के काम की होंगी उसकी सलाहें

जमाने के पैमानों पर एक औसत इंसान
जिसे आज तक मिला नहीं कोई ओहदा कोई कुर्सी
किसी के लिए क्या नज़ीर पेश कर पाएगा?
पैर के अंगूठों और घुटनों पर छिलने के निशान बताते हैं कि
उसे ठीक से रास्ता भी चलना नहीं आता

उसकी शख्शियत में इतना रस नहीं कि
कोई कहानीकार लिख पाए उस पर एक कहानी
उसके चलने में वह अकड़ नहीं
जो एक परदे के नायक में तो क्या
एक अदद असल इंसान में दिखती है
सीधा और सपाट जहां शुरू वहीं खतम
खूबसूरत चेहरों से सजे दिलफरेब शहर में
वह अधिक से अधिक एक वोट है प्रजातंत्र का

पत्नी और बच्चों की उसको समय के साथ बदलने की कोशिशों का
आज तक कोई असर नहीं दिखा
वह कहता है कि वह न नाप के हंस सकता है
न नाप के रो सकता है
तनिक गंभीर होकर बोला,'
'तिकड़म के तिकड़म को समझती है मेरी रोटी
थाली में चुपड़ी होने की शर्तों को समझती है मेरी रोटी
शर्तों को मारकर ठोकर तोड़ता रहा सफलता के अहंकार
यह जानते हुए सच कि किन किन के सामने होता रहा आज तक अपमानित

मैं उसका पड़ोसी नहीं दूर का रिश्तेदार भी नहीं
पर खड़ा होता हूं रंग और रोगन की इस दुनिया में उसके साथ
जैसे कहीं न कही से खुद आहत हूं और सोचता हूं
मिट्टी में गंध और पानी में स्वाद
देते हैं संकेत कि किसी न किसी मात्रा में खनिज मौजूद है वहां
मित्रों,वह कोई आसवित पानी नहीं
जिससे बुझती नहीं किसी की प्यास