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सीमा / श्रीरंग

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तूफान से पहले
फैल जाता है सन्नाटा
रिक्तता के बीच
खामोशी दम साधकर
करती है भयानक विस्फोट की प्रतीक्षा
सन्नाटा जब भर लेता है घृणा का बारूद अपनी बाजुओं में
सब कुछ कर देता है छिन्न-भिन्न .......

समय जब भी खड़ा करता है तूफान
उखाड़ फेंकता है पुराने दरख्तों को
ढहा देता है पुरानी धारणाओं और मान्यताओं का महल
एक झटके में ...
बंद कमरे में फँसी बिल्ली
तब तक आक्रमण नहीं करती
जब तक
एक भी खिड़की, एक भी दरवाजा, एक भी मोखा रहता है खुला
ये चेहरे पर गोलाबन्दी करती रिक्तता
जिन्दगी को घेरता सन्नाटा
चुप्पी के भूल का गुब्बारा ही तो है
जो एक सीमा से अधिक
नहीं सह सकता दबाव ...।