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सीमाएँ / अशूरा एतवेबी / राजेश चन्द्र
Kavita Kosh से
तीस सालों में दो क़दम भी
आगे नहीं गया मैं जनता चौराहे से
नहीं हुआ सहभागी बेघर लोगों की विदाई में
तीस सालों से समझ नहीं पाया मैं ईश्वर के आर्त्तनाद को
मैंने भर लीं अपनी हथेलियां हाँफती रातों की बर्फ़ से
पुलिसकर्मी दुर्बल चेहरों की तरफ़ तानते रहे रायफ़लें
लगाते रहे निशाना अँगों की बोरियों पर
यह नहीं थी वह भाषा जो रेल में सवार हो चुकी थी
ये नहीं थे वे सपने जो गाये गए थे लालटेन के गीत में
नहीं, नहीं, ये वे तो नहीं थे
दुपहरी में
परछाइयाँ ढलान से उतरीं और चली गईं
मर्द चले गए
औरतें और बच्चे भी गए
दुपहरी में
मौत आई, फिर दूसरी मौत और फिर...
अँग्रेज़ी से अनुवाद : राजेश चन्द्र