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सीलन भरे हिस्से की धूप / दिविक रमेश
Kavita Kosh से
(कवि त्रिलोचन के लिए साहित्य अकादमी के पुरस्कार की घोषणा सुनकर)
आज
पूरे शहर पर धूप बिखरी है।
चहल-पहल है पूरे शहर में
और चर्चा है मेरी उस कविता की
जिसमें मैंने कभी
इसी धूप के लिए
यज्ञ किया था।
मैं तो सोचता था
उपेक्षित कर दी गई
मेरी वह धूपकामी कविता
दफ़ना दी जाएगी।
लगता है
कहीं से
हाथ लग गई है
लोगों के।
आज इतना तो ज़रूर होगा
शहर के सीलन भरे हिस्से भी
फड़फड़ा रहे होंगे पंख
धूप में सिकते।