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सुई से सीख / शकुंतला कालरा
Kavita Kosh से
देखो गुड़िया कैंची काटे,
इक-इक कतरन दर्ज़ी-छाँटे।
खोले कहीं, कहीं पर मोड़े,
फिर सुई से सारे जोड़े।
मम्मी जी, हमको समझाओ,
दोनों का तुम भेद बताओ।
बार पते की बोलूँ सच्ची,
तुम तो हो छोटी-सी बच्ची।
कैंची सदा काटती रहती,
दर्जी के पैरों में रहती।
जो औरों को काटा करता,
कैंची-सा पैरों में रहता।
जो जुडने की बातें कहता,
सुई-सा टोपी पट रहता।
खुद छिद-छिद औरों को जोड़े,
कभी दूसरों का न तोड़े।
नया-पुराना जो भी आता,
सुई से वह जुड़कर जाता।
जो जुडने का पाठ पढ़ाता,
वह जग में है आदर पाता।