भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुई से सीख / शकुंतला कालरा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

देखो गुड़िया कैंची काटे,
इक-इक कतरन दर्ज़ी-छाँटे।

खोले कहीं, कहीं पर मोड़े,
फिर सुई से सारे जोड़े।

मम्मी जी, हमको समझाओ,
दोनों का तुम भेद बताओ।

बार पते की बोलूँ सच्ची,
तुम तो हो छोटी-सी बच्ची।

कैंची सदा काटती रहती,
दर्जी के पैरों में रहती।

जो औरों को काटा करता,
कैंची-सा पैरों में रहता।

जो जुडने की बातें कहता,
सुई-सा टोपी पट रहता।

खुद छिद-छिद औरों को जोड़े,
कभी दूसरों का न तोड़े।

नया-पुराना जो भी आता,
सुई से वह जुड़कर जाता।

जो जुडने का पाठ पढ़ाता,
वह जग में है आदर पाता।