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सुघर सलोने स्याम सुंदर सुजान कान्ह / जगन्नाथदास 'रत्नाकर'

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सुघर सलोने स्याम सुंदर सुजान कान्ह,
करुना-निधान के बसीठ बनि आए हौ।
प्रेम-प्रनधारी गिरधारी को सनेसो नाहिं,
होत हैं अंदेश झूठ बोलत बनाए हौ॥
ज्ञान गुन गौरव-गुमान-भरे फूले फिरौ,
बंचक के काज पै न रंचक बराए हौ।
रसिक-सिरोमनि को नाम बदनाम करौ,
मेरी जान ऊधो कूर-कूबरी पठाए हौ॥