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सुनाऊँ अपनी पीर / प्रेमलता त्रिपाठी
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सुनो कान्हा सुनाऊँ, अपनी पीर।
निश दिन बहत साँवरे, नयनों नीर।
तुम बिन कैसे भावे, दिन हो रैन,
मधुवन गाँव गोकुला, गोरस छीर।
कहाँ लौं कहूँ मेरे, नटवर लाल,
तट यमुना सून सबै, लगे अधीर।
तन-मन घ्यावे मोहन, हे गोपाल,
धेनु तृणौ न लेत जस, लागे भीर।
पलक पाँवड़े बनते, नैन उदास,
आओ हे कान्हा मन, बसिया हीर।