सुनिए तो / आशुतोष दुबे
बहुत-सी चीज़ों के पास है
बहुत कुछ कहने के लिए
एक फूल को कभी सुनिए
सुनिए खिलने के क्षण की वह निःशब्द ध्वनि
बड़े और छोटे होते दिनों के बीच
उसके होने और होते-होते रह जाने को सुनिए
कभी बात कीजिए एक पके हुए फल से
वब बताएगा आपको कि कहाँ तक चले गए हैं
रक के स्रोत पृथ्वी के नीचे
उसी से पता चलेगा संबंध
पकने की रफ़्तार से स्वाद का
और यह उतावलेपन के विरुद्ध
एक प्रमाणिक टिप्पणी होगी
कभी फ़ुरसत से एक तरफ़ रखकर काग़ज़ को
मुख़ातिब होइए कलम से
जानिए तफ़सील से कितनी बार आए
ठिठकने के क्षण
कितने शब्द जन्मे और कितने वफ़ात पा गए
उसा के ज़रिए
कितनी-कितनी चीज़ें
बस आते-आते ओझल हो गईं
कहाँ ख़याल भागते रहे उससे आगे
कहाँ-कहाँ जब्त करती रही थकान
और जम्हाइयाँ
कभी हाथ रखिए कुर्ते के कंधे पर
वह बता देगा साफ़गोई से
कहाँ आप सबसे बेहतर महसूस करते हैं
और कहाँ जाने भर के ख़याल से
भीग जाते हैं पसीने से
और इस चाय के दाग़ का पूरा किस्सा
उसके पास होगा और होगा
न जाने कितने अंतरंग क्षणों का वृत्तांत
बहुत-सी चीज़ों के पास है
बहुत कुछ कहने के लिए
आप सुनिए तो सही