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सुनियो न सुनियो / सौरभ
Kavita Kosh से
ओ मेरे एकाकी मनवा
सदा सुनियो तुम सत की
लोभ की आवाज़ न सुनियो
बात सुनियो तू अहिंसा की
हिंसा का तू शोर न सुनियो।
ओ मेरे एकाकी मनवा
सुनियो तू केशव की बंसी
मत सुनियो नेता का भाषण
मत सुनियो तू लगते नारे
सुनियो तो श्लोक गीता के
जो अभी हवा में है तैर रहे
मत सुनियो तू कसते फिकरे।
ओ मेरे एकाकी मनवा
सदा सुनियो तू गाती कोयल
मत सुनियो झगड़ते पड़ौसी
ध्यान से सुनियो संतों की वाणी
बहुरूपियों का आदेश न सुनियो
और सदा सुनियो तू कीर्तन भजन
चुनावों का उपदेश न सुनियो ।
ओ मेरे एकाकी मनवा
सुनियो तू अपने ही मन की
दूसरों का आग्रह भी सुनियो
सदा सुनियो अच्छा ही अच्छा
बना रहियो बापू का बन्दर।