भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुनो! / असंगघोष

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुनो!
तुम खुद
फेंक आओ
गाँव के बाहर
अपना ढोर-डांगर,
अपनी गंदगी,
अपनी पत्तल,
इससे जन्मना पाई
तुम्हारी जात!
कभी छोटी नहीं होगी
जाओ।