सुनो गुरमेहर / कविता कानन / रंजना वर्मा
सुनो गुरमेहर
कारगिल के युद्ध में
हिमालय की
चोटियाँ आपस में
नहीं लड़ी थीं
न ही सैनिकों की
रायफलों ने
युद्ध किया था।
वह युद्ध
पाकिस्तान के किये
आक्रमण का
जवाब था।
जिसने तुम्हारे
पिता को शहीद किया
उन गोलियों को
चलानेवाले हाथ
पाकिस्तानी थे।
इस प्रकार
अपने पिता के
हत्यारों को
दोषमुक्त कर के
मत करो उनकी
शहादत का अपमान।
जब तुम पाकिस्तान के
स्वतंत्रता दिवस पर
देती हो शुभकामना
और
भूल जाती हो
अपने देश की
आजादी का दिन
तब
तुम्हारे पिता की
पवित्र आत्मा
खून के आंसू रोती होंगी
लज्जित होती होगी
तुम्हारी माँ
तुम्हारे विचारों को सुनकर।
सुनो गुरमेहर
कैसे भूल गयी तुम
कि
जिस अन्न जल को
खा पी कर
तुम जवान हुई हो
जिस हवा में साँस लेकर
जिन्दा हो
वह भारत की ही है।
क्या तुम चाहती हो
कि हम
ईश्वर को धन्यवाद दें
कि हमने
नहीं जन्म दिया
किसी ऐसी सन्तान को
जो अपने देश के
विरुद्ध बातें करे ?
सुनो गुरमेहर
अब बच्ची नहीं हो तुम
जो देश के नेतृत्व को
चुनने का अधिकार रखता है
वह खुद मुख़्तार होता है
बदलो अपनी
निकृष्ट सोच को
या फिर
जा कर वहीं रहो
जिस की हमदर्दी ने
भुला दिया है तुम्हे
कि तुम
एक शहीद की
बेटी हो
हिंदुस्तानी हो।