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सुनो सुनो / सुरेश ऋतुपर्ण
Kavita Kosh से
सुनो, सुनो !
हवाओं में गूँज रहा है कैसा
झरती पत्तियों का
मध्यम-मध्यम संगीत !
सुनो, सुनो !
शरद की अगवानी में
वधू-प्रकृति
गा रही है मंगल-गीत !
देखो, देखो !
ओस भीगी पत्तियों के
झिलमिलाते गहने पहन
इठला रही है धरती !
देखो, देखो !
पेड़ों ने भी कर दी है समर्पित
अपनी सम्पूर्ण सम्पदा
और विनत खड़े हैं
दिगम्बर शिशु समान !
हाँ ! जानते हैं सभी
आ रहा है बसंत !
ला रहा है सबके लिए
प्यार-उपहार !
धरती के लिए धानी चुनरिया,
पेड़ों के लिए हरी पाग ।
आगत के स्वागत में
बिछी हैं सभी की पलकें
संजोए है सभी ने रंग
खेलने को फाग ।