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सुनो हिटलर / वेणु गोपाल
Kavita Kosh से
हम गाएंगे / अंधेरों में भी /
जंगलों में भी / बस्तियों में भी /
पहाड़ों पे भी / मैदानों में भी /
आँखों से / होठों से /
हाथों से / पाँवों से /
समूचे जिस्म से /
ओ हिटलर!
हमारे घाव / हमारी झुर्रियाँ /
हमारी बिवाइयाँ / हमारे बेवक़्त पके बाल /
हमारी मार खाई पीठ / घुटता गला/
सभी तो
आकाश गुनगुना रहे हैं।
तुम कब तक दाँत पीसते रहोगे?
सुनो हिटलर--!
हम गा रहे हैं।
(रचनाकाल : 29.06.1980)