भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सुनौ सखि बाजत है मुरली / भारतेंदु हरिश्चंद्र
Kavita Kosh से
सुनौ सखि बाजत है मुरली।
जाके नेंक सुनत ही हिअ में उपजत बिरह-कली।
जड़ सम भए सकल नर, खग, मृग, लागत श्रवन भली।
’हरीचंद’ की मति रति गति सब धारत अधर छली॥