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सुनौ हो भइया हमहू देखेन / सुशील सिद्धार्थ

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सुनौ हो भइया हमहू देखेन
सपना एकु अनोखा!

मेहनति की माया ते चमका
घर दुआरु चउबारा
लूटि फूंकि औ धांधागरदी
ह्वै गे नौ दुइ ग्यारा
लाला अब ना डंडी मारैं
नेता देइं न धोखा!

छ्वाट मुलुक ते बड़ा न ब्वालै
हथियारन कै बोली
गै बिलाय धरती पर ते
खउआबीरन कै टोली
आंगन मा यतना सुख उमगा
हमते जाइ न जोखा!

मौसम आपन रंग देखावै
फसिलि छमाछम नाचै
कउनौ जोगी गल्लिन गल्लिन
ढाई आखर बांचै
दसौ दिसा मा नयी भोर कै
गीतु गूंजिगा चोखा!