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सुपनै रो सुख / शिवराज भारतीय
Kavita Kosh से
उणनैं ठा है
बां दस रिपियां में
नीं भरीजै
पप्पूड़ै रै स्कूल री फीस
नीं करा सकै उणनैं
नुवां गाभा
अर नीं दिरा सकै
नुवों बस्तो
बां दस रिपियां में नी हुवैलो ईलाज
नीं आवैली दुवायां
बापू रै दमै री
उणनैं ठा है
बां दस रिपिया में
सगळै घर रा
एक बखत भी
धाप‘र नीं सो सकैला
पण उणनैं ठा है
बो दस रिपियां में
मोलाय सकै सुपनो
एक रात सारू
दस रिपियां रो सट्टो
सो‘कीं दिरावै
सुपनै में
फीस, बस्तो, गाभा धुवाई
अर सगळां नै
धाप‘र रोटी।
सुपनै में
तिसळज्यै मुळक
उणरै
पड़पड़ाइज्यै होठां माथै।
उणनै ठा है
सौ में सूं
एक मिनख रो हुसी
सुपनो पुरो
लारला मसळता रैसी हाथ
पण सुपनै रा सुख
दस रिपिया हाथ आवतां ई
ले जावैं उणनैं
आपूं-आप खींच‘र
सट्टै री ठौड़।