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सुपात्र बन / सुरजन परोही
Kavita Kosh से
सही वक्त पर सही काम
सही जगह सही धाम
मन्त्र कुपात्र के लिए नहीं होते हैं।
पहले सीख
फिर पढ़
फिर समझ
फिर सीधी तरह समझना
मन्त्र समझने के लिए होते हैं।
नहीं तो होगा नतीजा
गदहा महाराज जैसा।
मन्त्र सर्व सुलभ दूबों पर लिखा था
गदहा महाराज ने उसे चर लिया था
चरते ही वह और लात चलाने लगा
आखिर गदहा निकला निपट गदहा
वह सुपात्र नहीं है
चरने के लिए पात्र नहीं है
मन्त्र चरने के लिए नहीं विचार करने के लिए हैं।
सूरज आता है-जाता है
उदय-अस्त ही जीवन बिताता है
जीवन में जब सूर्य उदय होता है
हम वादा खूब करते हैं
सूर्य अस्त होने पर सोने के वक्त
सब भूल जाते हैं।
हम धोखे में जीवन बिता रहे हैं
सूर्य तो अस्त होकर भी चलता रहता है।