सुप्रिया रोॅ दोहा-4 / सुप्रिया सिंह 'वीणा'
मुश्किल छै अच्छा करम, कराॅे काम विश्वास।
परहित में रमलाॅे अगर, जैभाॅे हरि के पास।।
सुंदरता के नै छिके, रूप कोय आधार।
मन के सुंदरता अगर, झुकै सगर संसार।।
मानौॅ तॅे बस हार छै, ठानौॅ तॅे छै जीत।
बिन मेहनत कुछ नै मिलै, जग के सच्चा रीत।।
करोॅ लक्ष्य के साधना, करोॅ निरंतर काम।
वीणा साहस सें मिलै, हरदम शुभ परिणाम।।
अहंकार धन शक्ति के, सुंदरता के मान।
इस सब छै संसार में, मानव के अज्ञान।।
जाना तॅे छेबै करै, इक दिन सबके भाय।
मरतैं छै तभियाॅे मनुख, धनोॅ लली रिरियाय।।
आशावादी केॅ कभी, मिललोॅ नै छै राह।
मेहनत सें ही होय छै, पूरा सब्भे चाह।।
आलस छै दुरगुन बड़ोॅ, यें रोकैं छै राह।
वीणा मेहनत रात-दिन, पूरा होतैं चाह।।
वीणा नै करिहोॅ कभी, समय तोंय बरबाद।
समय कभी लौटे कहाँ, रखियो ‘वीणा’ याद।।