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सुप्‍त पंखों के निकट / कात्यायनी

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त्‍वरा आई
सुप्‍त पंखों के निकट
फड़फड़ाहट
ताज़गी बन भर रही है
आत्‍मा के विवर में।

कहीं जीवन तरल - सा
अन्धी गुफ़ाओं में
प्रवाहित हो रहा है।

लो, कहीं से अब
पुकारा जा रहा है
धार को, या आग को या तुम्‍हें ?

क्‍या तुम सुन रहे हो  ?