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सुबह-शाम हम / नईम

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सुबह-शाम हम जिनको छीजे,
वक्त पड़े पर वो न पसीजे।

गै़रों ने आकन्न रखी पर
सगे-सगों ने ही उछाल दी,
अपने ही जाये अंशों ने-
नाकों आज नकेल डाल दी;

खेतों उगे कँटीले करकट-
धान जहाँ हमने थे बीजे।

दिन मेरे अंतर्यामी के-
पड़े हुए गहरी साँसत में,
केश बिखेरे रात चीखती,
हम सब खड़े महाभारत में;

कुसमय काल, कपास समझकर-
हमें आज धुनियाँ-सा पींजे।

राजपुत्र-से जन्म हमारे
सूतपुत्र-से भाग्य लिखे हैं,
दिव्य दृष्टि संजय-सी, लेकिन
सपने कभी-कभार दिखे हैं;

मन उचाट अपने से ही जब,
किसी ग़ैर पर कैसे रीझे?