भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सुबह का गीत / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
सुबह हो गई --
मुर्गा बोला
कहा कबूतर ने --
नीली खिड़की में से पीली
धूप लगी झरने ।
मम्मी के हाथों से साँकल
खुली रसोई की
झट-पट बिल्ली मौसी चल दी
खोई-खोई-सी
बासी रोटी के टुकड़ों से
पेट लगी भरने ।
नीली खिड़की में से पीली
धूप लगी झरने ।
पिंजरे के तोते से यह सब
देखा नहीं गया
बड़ी ज़ोर से चिल्लाया तो --
आई मुझे दया
चिड़ियाघर का रूप ले लिया
छोटे से घर ने ।
नीली खिड़की में से पीली
धूप लगी झरने ।